पंतनगर, केंद्र सरकार को फार्मा एप्लिकेशन में इस्तेमाल किए जाने वाले रसायन, आइसोप्रोपिल एल्कोहल (आईपीए) के लिए इंडियन फार्माकोपिया (आईपी) सर्टिफिकेट अनिवार्य कर देना चाहिए क्योंकि आयात किए गए आईपीए से काफी खतरा बढ़ रहा है। भारतीय आईपीए निर्माताओं का कहना है कि जिस सस्ते आईपीए का आयात किया जा रहा है वह फार्माकोपिया के तय पैमानों जैसे- यूवी अब्सॉर्बन्स टेस्ट, अनसैचुरेटेड हाइड्रोकार्बन की पहचान और तेजी से कार्बोनाइज हो जानी वाली सामग्री -पर किसी तरह से खरी नहीं उतरतीं। भारतीय आईपीए निर्माताओं का दावा है कि इस तरह के निम्नस्तरीय गैर-फार्मा ग्रेड वाले आईपीए का इस्तेमाल करने से दवाई की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ रहा है जिससे लाखों भारतीय ग्राहकों के स्वास्थ्य को गंभीर खतरा पैदा हो गया है। साथ-साथ इससे देश की फार्मा इंडस्ट्री की प्रतिष्ठा को भी संकट उपस्थित हो गया है।
सामान्य भाषा में आईपीए को आइसोप्रोपेनॉल कहते हैं जो तेज महक वाला रंगहीन और ज्वलनशील द्रव होता है। इसका इस्तेमाल तमाम तरह के औद्योगिक और घरेलू केमिकल्स बनाने में होता है और साथ ही, इसका बड़ी मात्रा में उपयोग बल्क ड्रग्स और ड्रग फार्मुलेशन में होता है जो फार्मा के उत्पादन प्रक्रिया के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं। इसका इस्तेमाल हैंड सैनिटाइजर्स, एंटीसेप्टिक और किटाणुनाशकों जैसे उत्पादों में एक सामान्य सामिग्री के तौर पर भी होता है।
भारतीय फार्मास्युटिकल सेक्टर में आमतौर पर लगभग 170,000 एमटी (मैट्रिक टन) आईपीए का इस्तेमाल होता है जबकि वित्त वर्ष 2021 में भारत भर में इसकी मांग लगभग 240,000 मैट्रिक टन की थी। फार्मा इंडस्ट्री में जिस 170,000 मैट्रिक टन के आईपीए का उपयोग हुआ उसमें सिर्फ 12रू फार्मा ग्रेड, भारतीय और दूसरे फार्माकोपिया मानकों पर खरा उतरा था। बाकि सब गैर-फार्मा ग्रेड वाला था। भारत की सरकार को अभी भी फार्मा इंडस्ट्री द्वारा आयातित दवा बनाने वाली सामिग्रियों और सॉल्वैंट्स जिसमें आईपीए भी शामिल है के आयात को लेकर निर्यात पर कड़े प्रतिबंध लगाने की जरूरत है। भारतीय उपभोक्ताओं के स्वास्थ्य के साथ-साथ भारत फार्मा इंडस्ट्री के स्तर को देखते हुए यह जरूरी है कि फार्मा सेक्टर में जिस आईपीए का इस्तेमाल होता है उसमें इंडियन फार्माकोपिया (आईपी) के सर्टिफिकेशन को अनिवार्य किया जाए।